एजिंग माइंड क्या पैदा कर सकता है समस्याएं?

Published:Nov 30, 202309:56
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एजिंग माइंड क्या पैदा कर सकता है समस्याएं?

एजिंग के कारण ब्रेन के साइज में परिवर्तन होता है। ब्रेन बढ़ती उम्र के साथ सिकुड़ता है और मॉलिक्यूल्स से लेकर मॉर्फोलॉजी तक के सभी स्तरों पर परिवर्तन होते हैं। स्ट्रोक की घटना, डेमेंशिया आदि बीमारी के खतरे उम्र बढ़ने के साथ ही बढ़ते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ही शारीरिक के साथ ही मानसिक परिवर्तन भी होते हैं। एंजिग माइंड के कारण महिलाओं और पुरुषों को मानसिक तकलीफों से गुजरना पड़ता है। एंजिग माइंड (Ageing Thoughts)के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार होते हैं। उम्र बढ़ने के लक्षणों में बाल सफेद होना या फिर त्वचा का सिकुड़ना ही शामिल नहीं है बल्कि मैमोरी का कम होना, भूख न लगना, अर्थराइटिस की समस्या, इम्यून सिस्टम का कमजोर होना, रेयर स्लीप डिसऑर्डर, सनडाउन सिंड्रोम (Sunset Syndrome) आदि लक्षण भी देखने को मिलते हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य होना एजिंग माइंड के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको एंजिंग माइंड के कारण होने वाली तकलीफों और उससे निजात पाने के लिए महत्पूर्ण उपाय के बारे में जानकारी देंगे। जानिए एजिंग माइंड किस तरह से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर क्या असर डालता है।

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एजिंग माइंड (Ageing thoughts) का क्या मतलब है?

हमारा ब्रेन 100 बिलियन न्यूरॉन्स से एक अरब से ज्यादा साइनेप्सिस (synapses) से जुड़ा होता है। मस्तिष्क में परिवर्तन जीवनभर होता है। गर्भधारण के तीसरे सप्ताह से मस्तिष्क का निर्माण शुरू होता है और बुढ़ापे तक ये प्रक्रिया चलती रहती है। मस्तिष्क की जटिल संरचनाएं और कार्य हर दिन बदलते हैं। मस्तिष्क का कार्य नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। जीवन के शुरुआती दिनों में माइंड हर सेकंड एक मिलियन से अधिक नए नर्व कनेक्शन बनाता है। मस्तिष्क का आकार प्रीस्कूल पीरियड में चार गुना बढ़ता है और छह साल तक की आयु में ये एडल्ड वॉल्युम के करीब 90 % तक पहुंच जाता है।  उम्र बढ़ने के साथ ही मस्तिष्क का कार्य धीमी गति से होता है और उसका असर पूरे शरीर में दिखाई पड़ता है। इसे ही एजिंग माइंड कहते हैं।

एजिंग माइंड के कारण उत्पन्न होने वाली मानसिक समस्याएं ( Ageing thoughts and psychological well being)

पुरुषों में एजिंग माइंड

उम्र बढ़ने के साथ मस्तिष्क में परिवर्तन नैचुरल है। महिलाओं और पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ मानसिक तकलीफों के लक्षण कुछ हद तक भिन्न हो सकते हैं। पुरुषों में महिलाओं की अपेक्षा अधिक चिड़चिड़ापन, तेज गुस्सा, कंट्रोल लॉस होना, एग्रेशन आदि भिन्न हो सकता है। महिलाओं की अपेक्षा पुरुष मानसिक तकलीफों के बारे में बात करने से बचते हैं। मानसिक तकलीफों का इलाज कराने के बजाय पुरुष लोग एल्कोहॉल, ड्रग, स्मोकिंग आदि को अपनाना पसंद करते हैं। मानसिक परेशानी होने पर पुरुषों में अधिक काम करने की हैबिट भी पड़ सकती है। पुरुषों में मेन्टल हेल्थ प्रॉब्लम दिखने पर महिलाओं की अपेक्षा अधिक सुसाइडल थॉट आते हैं। अगर किसी अपने से मेन्टल हेल्थ को लेकर बात की जाए, तो बहुत सी समस्याओं का समाधान अपने आप ही निकल सकता है।

महिलाओं में होने वाली मानसिक तकलीफों में डिप्रेशन और चिंता आम है। महिलाओं को हॉर्मोनल चेंजेस के कारण मानसिक विकार जैसे कि प्रिनेटल डिप्रेशन (perinatal melancholy), प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (premenstrual dysphoric dysfunction), प्रीमेनोपॉज रिलेटेड डिप्रेशन ( perimenopause-related melancholy) आदि का सामना करना पड़ता है। महिलाओं और पुरुषों में पाए जाने वाले मेन्टल डिसऑर्डर जैसे कि सिजोफ्रेनिया (schizophrenia ) और बायपोलर डिसऑर्डर ( bipolar dysfunction) में अंतर को लेकर अभी तक कोई भी रिचर्स सामने नहीं आई है। ये कहना मुश्किल है महिलाओं और पुरुषों में इन डिसऑर्डर में कई भिन्नताएं पाई जाती हैं।

महिलाओं में प्रिनेटल डिप्रेशन (perinatal melancholy) की समस्या मां बनने के बाद होती है। ऐसा नई मां की जिम्मेदारियों और स्वास्थ्य समस्याओं के कारण होता है। प्रीमेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (premenstrual dysphoric dysfunction) के कारण महिलाओं को चिंता, डिप्रेशन और पीरियड्स में अनियमितता हो सकती है। प्रीमेनोपॉज रिलेटेड डिप्रेशन ( perimenopause-related melancholy) की समस्या के दौरान महिलाओं के शरीर में हॉर्मोनल चेंजेस होते हैं, जो डिप्रेशन का कारण बनती है। ये सभी महिलाओं में कम एज में होने वाले मानसिक विकार हैं। वहीं अधिक उम्र की करीब 60 प्रतिशत महिलाएं डेमेंशिया (dementia) और एंग्जायटी डिसऑर्डर (anxiousness problems) से ग्रस्त रहती हैं।

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पुरुष मेन्टल हेल्थ के लक्षणों पर आमतौर पर ध्यान नहीं देते हैं और इस कारण परिस्थितियां कठिन हो जाती हैं। मानसिक समस्याएं होने पर कमजोरी के साथ ही अन्य लक्षण भी नजर आ सकते हैं। पुरुषों और महिलाओं में कम उम्र में ही मेन्टल प्रॉब्लम शुरू हो जाती हैं, जो उम्र बढ़ने के साथ अधिक गंभीर हो सकती हैं। बीमारी का सही समय पर ट्रीटमेंट न मिलने पर गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

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 डिप्रेशन  (Melancholy) की समस्या

पुरुषों और महिलाओं में डिप्रेशन के लक्षण कुछ भिन्न हो सकते हैं। लगातार उदास रहना, फोकस करने में दिक्कत, गिल्ट फील होना, होपलेस या वर्थलेस, जीवन जीने में कोई उत्साह न रहना, आत्महत्या के ख्याल आना आदि डिप्रेशन के लक्षण हैं। पुरुषों को डिप्रेशन की समस्या होने पर वो रोते या फिर अपने मन की बात को किसी के साथ शेयर नहीं करते हैं जबकि महिलाएं मन की बात शेयर करती हैं। डिप्रेशन से ग्रस्त पुरुष अपने लक्षणों को छिपाने की पूरी कोशिश करते हैं। इन कारणों से पुरुषों में आत्महत्या का विचार महिलाओं की अपेक्षा प्रबल हो जाता है।

  • उदासी
  • एकांत में रहना
  • निराशा
  • वेट लॉस
  • कमजोरी महसूस होना
  • नींद पूरी न होना
  • याददाश्त कम होना

महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले डिप्रेशन की संभावना अधिक रहती है। महिलाओं में हॉर्मोनल चेजेंस के कारण डिप्रेशन के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। पीरियड्स के दौरान हॉर्मोनल बदलाव के कारण मूड स्विग्ंस, बच्चे के जन्म के पहले और जन्म के बाद होने वाला डिप्रेशन, मोनोपॉज के बाद होने वाला डिप्रेशन और एस्ट्रोजन के उतार-चढ़ाव के कारण डिप्रेशन की समस्या। उम्र बढ़ने के साथ ही महिलाओं में डिप्रेशन या स्ट्रेस की संभावना भी बढ़ जाती है। सभी महिलाओं में प्रीनेटल या पोस्टनेटल डिप्रेशन के लक्षण दिखाई दें, ये जरूरी नहीं है।

बायपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Dysfunction)

बायपोलर डिसऑर्डर एक मानसिक विकार है। मूड स्विंग्स से पीड़ित व्यक्ति को देखकर आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं कि वो कब खुश होगा और कब दुखी हो जाएगा। इस डिसऑर्डर के कारण व्यक्ति को निराशा महसूस होती है। बायपोलर डिसऑर्डर के कारण व्यक्ति को आत्महत्या का विचार भी आ सकता है। जब व्यक्ति बहुत खुश होता है, तो उस एपिसोड को ‘मैनिक एपिसोड’ कहा जाता है। चिंता (एंग्जायटी) होने या फिर दुखी होने की स्थिति डिप्रेसिव एपिसोड कहलाती है। ऐसे में व्यक्ति जल्दी जल्दी बात करता है या फिर एग्रेसिव हो सकता है। न्यूरोट्रांसमीटर में गड़बड़ी बायपोलर डिसऑर्डर का कारण बनती हैं। ये बीमारी अनुवांशिक कारणों से भी हो सकती है।

ईटिंग डिसऑर्डर (Consuming problems)

ईटिंग डिसऑर्डर मानसिक विकार है। एनोरेक्सिया नर्वोसा (anorexia nervosa), बुलिमिया नर्वोसा (bulimia nervosa) और अधिक खाने का विकार ( binge-eating dysfunction) शामिल है। ईटिंग बिहेवियर के बदलने से शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है। ईटिंग डिसऑर्डर के कारण व्यक्ति अधिक मात्रा में खाता है और बॉडी शेप बिगड़ जाता है। इस कारण से शरीर से सही मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है। इस विकार के कारण हार्ट डिजीज, डायजेस्टिव डिजीज, बोन्स और माउथ और साथ ही अन्य बीमारियों का खतरा रहता है। अगर आप खाना न खाने का बहाना ढूंढ़ रहे हैं या फिर अधिक मात्रा खा रहे हैं, तो आपको डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए। अधिक उम्र में ईटिंग डिसऑर्डर के कारण निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं।

  • खाने के बाद अक्सर लोगों को बाथरूम जाने की आवश्यकता महसूस होती है।
  • ईटिंग डिसऑर्डर के कारण अधिक उम्र के लोगों में ठंड के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • हेयर लॉस प्रॉब्लम, डेंटल इशू आदि भी इन समस्याओं को बढ़ाने का काम कर सकते हैं।

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डेमेंशिया (dementia)

डिमेंशिया (Dementia) एक मानसिक विकार है, जो महिलाओं और पुरुषों को अधिक उम्र में हो सकता है। 60 से 65 साल की उम्र में डिमेंशिया होने की अधिक संभावना होती है। डिमेंशिया के कारण याददाश्त में कमी आना, सोचने की शक्ति कम होना, बोलने में समस्या होना आदि लक्षण दिखाई पड़ते हैं। डिमेंशिया से पीड़ित व्यक्ति का मूड अचानक से बदल सकता है। इस बीमारी के कारण कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा होना आम बात है। अक्सर व्यक्ति सामान को रखकर भूल जाता है और याद करने पर भी बात नहीं आती है। अगर सही समय पर इस बीमारी का इलाज न कराया जाए, तो स्थिति गंभीर हो सकती है।

ब्रेन सेल्स के डैमेज के कारण डिमेंशिया की समस्या होती है। अगर डिमेंशिया के लक्षणों पर ध्यान न दिया जाए, तो स्थिति बदतर हो सकती है। जिन व्यक्तियों को थायरॉइड प्रॉब्लम, डिप्रेशन की समस्या या शरीर में विटामिन की कमी होने लगती है, उनमें डिमेंशिया की संभावना बढ़ जाती है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोग भी इसका आसानी से शिकार हो जाते हैं।

एंग्जायटी डिसऑर्डर (Nervousness dysfunction)

व्यक्ति का जब खुद में नियंत्रण खोने लगता है, तब एंग्जायटी की समस्या होती है। कुछ लोग जरा-सी बात के कारण चिंतित हो जाते हैं और खुद की भावनाओं पर कंट्रोल नहीं कर पाते और दुखी हो जाते हैं। इस कारण से दिल तेजी से धड़कने लगता है। एंग्जायटी के कारण शरीर में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं। ऐसे में खुद के डर पर नियंत्रण जरूरी है। ऐसा करने से समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। अगर आपको उम्र बढ़ने के साथ ऐसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो आपको डॉक्टर से संपर्क जरूर करना चाहिए। एंग्जायटी डिसऑर्डर के ट्रीटमेंट के लिए साइकोथेरिपी जैसे कि कॉग्नेटिव बिहेवियरल थेरिपी उपयोगी साबित होती है। करीब 46 प्रतिशत अधिक उम्र के लोगों को कॉग्नेटिव बिहेवियरल थेरिपी से राहत मिलती है।

अल्जाइमर (Alzheimer)

उम्र बढ़ने के साथ ही अल्जाइमर की परेशानी आम हो जाती है। अक्सर लोगों को अल्जाइमर की बीमारी के बारे में पता नहीं चल पाता है। अल्जाइमर के कारण व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को भूलने लगता है। ऐसा ब्रेन सेल्स डैमेज करने के कारण होता है। व्यक्ति के अंदर अल्जाइमर के कारण भ्रम की स्थिति भी पैदा हो सकती है। अल्जाइमर की मुख्य तीन स्टेज अर्ली स्टेज, मिडिल स्टेज और लेट स्टेज होती है।

पार्किंसंस डिजीज (Parkinson’s illness)

अधिक उम्र में पार्किंसंस रोग समस्या आम हो सकती है। पार्किंसंस रोग नर्व सेल्स में क्षति के कारण होता है। पार्किंसंस रोग के कारण सूंघने की क्षमता में कमी, आवाज का बदलना, कब्ज की समस्या, शरीर में कंपकंपी होना, चलने में समस्या आदि का सामना करना पड़ता है। पार्किंसंस रोग के कारण शरीर के कुछ हिस्सों में कठोरता का अनुभव भी हो सकता है। वहीं इस बीमारी के कारण व्यक्ति को डिप्रेशन की समस्या भी हो सकती है।

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बढ़ती उम्र में ये मानसिक तकलीफें कर सकती हैं परेशान

बढ़ती उम्र में याददाश्त का कम होना, मूड स्विंग होना, खाने की आदतों में बदलाव, डिप्रेशन की समस्या, स्ट्रेस आदि समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। अधिक उम्र में मेन्टल डिसऑर्डर और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर मुख्य समस्याओं के रूप में सामने आते हैं। अल्जाइमर, डिप्रेशन, स्ट्रेस आदि अधिक उम्र की मानसिक तकलीफें हैं। अधिक उम्र में मेन्टल डिसऑर्डर और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर मुख्य समस्याओं के रूप में सामने आते हैं। जानिए डिमेंशिया के कारणों के बारे में।

  • अल्जाइमर (Alzheimer)
  • क्रॉनिक हाई ब्लड प्रेशर (Continual hypertension)
  • पार्किंसंस डिजीज (Parkinson’s illness)
  • हंटिंगटन डिजीज (Huntington’s illness)
  • क्रूट्सफेल्ड जेकब डिजीज (Creutzfeldt-Jakob illness)

एजिंग माइंड की समस्याओं को ऐसे करें ठीक

उम्र का बढ़ना प्राकृति है और इसे रोका नहीं जा सकता है। अगर उम्र बढ़ने के साथ ही कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए, तो कुछ समस्याओं से निजात जरूर पाया जा सकता है। एजिंग माइंड के कारण मुख्य रूप से डिमेंशिया (Dementia), डिप्रेशन और स्ट्रेस डिसऑर्डर का सामना करना पड़ता है। जानिए इनसे कैसे निजात पाया जा सकता है।

डिमेंशिया से ऐसे पाए निजात

  • एल्कोहॉल का सेवन न करें।
  • अगर आपको थायरॉइड या डिप्रेशन की समस्या है, तो समय पर दवाओं का सेवन करें।
  • स्मोकिंग एक नहीं बल्कि कई बीमारियों को जन्म देता है इसलिए इसे छोड़ दें।
  • डॉक्टर ने डिमेंशिया की रोकथाम के लिए जिन दवाओं का सेवन करने की सलाह दी है, उन्हें समय पर लें।

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एंग्जायटी डिसऑर्डर से ऐसे रहे दूर

बढ़ती उम्र की मानसिक समस्याएं व्यक्ति को दुखी कर सकती हैं। एंग्जायटी डिसऑर्डर के कारण मन में हमेशा किसी न किसी बात को लेकर डर बना रहता है। एंग्जायटी डिसऑर्डर के कारण मन में हमेशा उदासी का भाव रहता है। ये विकार व्यक्ति को खुश रहने नहीं देता है और व्यक्ति एंजॉय नहीं कर पाता है। अगर आपको एंग्जायटी डिसऑर्डर के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर मेडिसिन के साथ ही लाइफस्टाइल में सुधार के सुझाव भी दे सकता है। आप मेडिटेशन, म्युजिक थेरिपी आदि की मदद से इस समस्या से राहत पा सकते हैं।

अधिक उम्र में डिप्रेशन से निजात

अधिक उम्र में डिप्रेशन से निजात पाने के लिए अगर पौष्टिक आहार, अच्छी नींद और फिजिकल के साथ ही मेंटल बॉडी फिट रखी जाए, तो काफी हद तक डिप्रेशन की समस्या से बचा जा सकता है। खाने में विटामिन सी, विटामिन B,ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, कार्बोहायड्रेट आदि का सेवन किया जाए, तो आपके स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ेगा। आपको डिप्रेशन दूर करने के लिए मेडिटेशन को भी अपनाना चाहिए। आप रोजाना कुछ समय के लिए योग और व्यायाम करें और स्ट्रेस को कम करें। बुरी आदतें जैसे कि एल्कोहॉल का सेवन, स्मोकिंग आदि से दूरी बनाएं।

पार्किंसंस डिजीज (Parkinson’s illness) से निजात

पार्किंसंस रोग से निजात पाने के लिए बीमारी के लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। पार्किंसंस रोग के कारण माइंड में डोपामीन का प्रोडक्शन होता है। पार्किंसंस रोग का रिस्क महिलाओं के मुकाबले पुरुषों में ज्यादा होता है। पार्किंसंस रोग के लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर कुछ दवाओं का सेवन करने की सलाह देंगे। खाने में सैचुरेचेड फैट और डेयरी प्रोडक्ट को इग्नोर करना चाहिए और ओमेगा 3 फूड्स को शामिल करना चाहिए।

बायपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Dysfunction) से निजात

बायपोलर डिसऑर्डर का खतरा लंबे समय में तनाव के कारण बढ़ जाता है। जो लोग एल्कोहॉल का सेवन करते हैं या फिर जिनके परिवार में बायपोलर डिसऑर्डर की हिस्ट्री होती है, उनमे इस बीमारी का खतरा अधिक बढ़ जाता है। डॉक्टर टेस्ट के बाद बिहेवियर पैर्टन से जुड़े कई सवाल पूछ सकते हैं। मूड के आधार पर डॉक्टर बायपोलर डिसऑर्डर का इलाज करते हैं। ड्रग थेरिपी की सहायता से डिप्रेस एपिसोड को ठीक किया जाता है। साथ ही एंटी-एंजाइयटी मेडिसिन लेने की भी सलाह दी जाती है।

ईटिंग डिसऑर्डर (Consuming problems) से निजात

ईटिंग डिसऑर्डर एक प्रकार का मेन्टल डिसऑर्डर है। इस कारण से व्यक्ति को कुषोषण की समस्या भी हो सकती है। ईटिंग डिसऑर्डर से बचने के लिए ईटिंग पैटर्न को लेकर एलर्ट रहना चाहिए।डायटिंग अवॉयड करें और खाने में पौष्टिक आहार शामिल करें। एजिंग के कारण हॉर्मोनल चेंजेस भी खाने के विकार का कारण हो सकता है। ईटिंग डिसऑर्डर के लक्षणों से राहत पाने के लिए डॉक्टर कुछ मेडिसिन लेने की सलाह दे सकते हैं। 

अधिक उम्र के लोगों में हृदय संबंधी समस्याएं, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं, ऑस्टियोपोरोसिस और मोटापा आदि ईटिंग डिसऑर्डर के कारण अधिक गंभीर हो सकते हैं। अधिक उम्र में ईटिंग डिसऑर्डर की समस्या होने पर सपोर्टिंग काउंसलिंग की जरूरत होती है। वहीं डॉक्टर डिप्रेशन की समस्या को मेडिसिन की हेल्प से ठीक करने की कोशिश करते हैं। साइकोथेरिपी भी इस बीमारी में राहत देने का काम करती है। वहीं अधिक उम्र के लोगों को फिजिकल केयर की भी जरूरत पड़ती है।

अल्जाइमर से निजात

अल्जाइमर का इलाज अभी तक संभव नहीं हो सका है। बदलती लाइफस्टाइल के कारण तनाव होना आम बात है। अगर तनाव में नियंत्रण के साथ ही लाइफस्टाइल में बदलाव किया जाए, तो बीमारी पर कफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। आप रोजाना ब्रेन गेम खेल सकते हैं और साथ ही डॉक्टर की ओर से दी गई दवाओं का सेवन करें। जिन चीजों को आप रोजाना भूल जाते हैं, उन्हें डायरी में नोट जरूर कर लें। ऐसा करने से आप बीमारी पर नियंत्रण कर सकते हैं।

हेल्थी माइंड के लिए किन डायट्स को फॉलो करना चाहिए?

  • हेल्थी माइंड के लिए खाने में ग्रीन वेजीटेबल्स को शामिल करें। खाने में विभिन्न प्रकार की सब्जियों को हफ्ते में एक बार जरूर शामिल करें।
  • एंटीऑक्सीडेंट बेनीफिट्स के लिए खाने में बेरीज खाएं।
  • खाने में नट्स को शामिल करें। साथ ही व्होल ग्रेन्स भी खाएं।
  • वैसे तो मानसिक बीमारियों में एल्कोहॉल का सेवन घातक होता है लेकिन रिचर्स में ये बात सामने आई है कि रेड वाइन अल्जाइजर पेशेंट के ब्रेन के लिए लाभदायकहोती है। आप इस बारे में डॉक्टर से जानकारी जरूर लें।
  • खाने में सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट लेने से बचें। बेहतर होगा कि प्रोसेस्ड फूड का सेवन न करें।हेल्थी ब्रेन के लिए हफ्ते में एक बार फिश जरूर खाएं। फिश मैमोरी को तेज करने का काम करता है। फिश खाने से शरीर को एक्ट्रा बेनीफिट्स भी मिलते हैं।

हेल्थी माइंड के लिए एक्सरसाइज

  • उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर की क्षमता भी कम होने लगती है। बढ़ती उम्र के असर को रोकने के लिए और अच्छी मेन्टल हेल्थ के लिए एक्सरसाइज बहुत जरूरी है।
  • अधिक उम्र के लोगों को रोजाना वॉक पर जाना चाहिए। आप ज्यादा नहीं, तो रोजाना दस मिनट के लिए वॉक जरूर करें।
  • अधिक उम्र के लोग आर्ट और क्राफ्ट बनाकर माइंड को तेज कर सकते हैं।
  • पजल्स भी माइंड को तेज करने में हेल्प करती है।
  • फन एक्टिविटी या इंटरेक्टिव ऑनलाइन गेम्स हेल्दी माइंड के लिए जरूरी हैं।
  • आप लो इंटेस्टिटी एरोबिक्स भी कर सकते हैं। ऐसा करने से पॉजिटिव थॉट्स आते हैं और साथ ही अलर्टनेस भी बढ़ती है।
  • रोजाना योग जरूर करें। योग करने से फोकस करने में मदद मिलती है।
  • अगर आपको स्विमिंग आती है, तो बेहतर मेन्टल हेल्थ के लिए स्विमिंग लाभदायक साबित होगा। रोजाना दस मिनट की स्विमिंग मेन्टल हेल्थ बूस्ट करने में मदद करेंगी।
  • साइकलिंग शरीर के विभिन्न हिस्सों को स्ट्रेंथ देने का काम करते हैं।
  • बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए डांस को भी अपनाया जा सकता है।
  • एक्सरसाइज के साथ ही रिलेक्स करना भी बहुत जरूरी है। अधिक उम्र में एक साथ ज्यादा एक्सरसाइज आपके शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती है। बेहतर होगा
  • कि एक्सपर्ट की देखरेख में ही एक्सरसाइज करें।

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एजिंग माइंड: बढ़ती उम्र की मानसिक समस्याएं कर रही हैं परेशान तो लाइफस्टाइल में करें सुधार

  • अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाइफस्टाइल में सुधार बहुत जरूरी हैं। खाने में पौष्टिक आहार शामिल करें। खाने में विभिन्न फूड्स को शामिल करें ताकि शरीर में मिनिरल्स, विटामिन्स या कार्ब की कमी न हो।
  • रोजाना एक्सरसाइज बहुत जरूरी है। आप चाहे तो हल्की फुल्की एक्सरसाइज भी कर सकते हैं।
  • स्ट्रेस को कम करना सीखें। किसी भी बात को मन से न लगाएं और अपनों के साथ शेयर करें। ऐसा करने से आपका स्ट्रेस लेवल कम होगा।
  • नींद की कमी मेन्टल इलनेस का कारण बन सकती है। पूरी नींद लें और सुबह जल्दी उठकर एक्सरसाइज करें।
  • अपनी दिनचर्या को एक डायरी में जरूर नोट करें।
  • निगेटिव थॉट को दूर करने के लिए मेडिटेशन करें।
  • डॉक्टर ने जिन दवाओं का सेवन करने की सलाह दी है, उन्हें समय पर लें।
  • अगर आपको भूल जाने की आदत है, तो घरवालों से मदद लें और अपनी रोजाना की जरूरतों को एक डायरी में लिख लें ताकि आपको किसी समस्या का सामना न करना पड़े।

अगर आप कुछ बातों का ख्याल रखेंगे तो एंजिग माइंड के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं से राहत पा सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ शारीरिक के साथ ही मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन बीमारी के लक्षण दिखने पर समय पर इलाज और लाइफस्टाइल में सुधार आपको गंभीर समस्याओं से बचाने का काम कर सकता है। अगर आपको एजिंग माइंड के बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से संपर्क करें। यहां दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।

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