आय हेल्थ को मेंटेन रखने के लिए ध्यान रखें ये बातें

Published:Nov 30, 202309:56
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हमारे शरीर में सभी ऑर्गन जरूरी हैं लेकिन आखों के बिना जीवन की कल्पना करना बहुत कठिन है। आंखे किसी भी व्यक्ति या वस्तु को पहचानने में मदद करती है। रात में सोने से पहले और सुबह उठने के बाद हमारी आंखे काम करना शुरू कर देती हैं। आंखों के विभिन्न भाग एक साथ मिलकर काम करते हैं, तभी हम किसी वस्तु को देखने में सक्षम हो पाते हैं। जिन चीजों पर प्रकाश पड़ता है, उन्हें हमारी आंखें देख सकती हैं। हेल्दी आय से मतलब दिखने में किसी प्रकार की समस्या न होना और में किसी प्रकार की तकलीफ महसूस न होना है। अच्छे विजन के लिए आंखों का स्वस्थ्य होना भी बहुत जरूरी है। आय हेल्थ को बेहतर बनाने के लिए उन आदतों को छोड़ देना चाहिए, जो आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा रही हो। इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको आय हेल्थ से जुड़ी तकलीफें और उनसे बचाव, आय हेल्थ को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स, आय केयर टिप्स आदि के बारे में जानकारी देंगे। जानिए कैसे खराब हो सकती हैं आपकी आंखें।

आय हेल्थ (Eye well being) को प्रभावित करते हैं ये फैक्टर्स

आय हेल्थ

आय डिजीज के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार हो सकते हैं। स्मोकिंग, एल्कोहॉल, डायट और एजिंग मुख्य फैक्टर हैं, जो आंखों की बीमारियों के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। स्मोकिंग के दौरान ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के कारण आंखों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है। वहीं एल्कोहॉल भी आंखों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने का काम करता है। एल्कोहॉल जरूरी न्यूट्रिएंट्स को अवशोषित कर लेता है। उम्र बढ़ने के साथ ही आय स्ट्रक्चर में चेंज होता है, जिसके कारण आय डिसऑर्डर और डिजीज की समस्या शुरू हो जाती है। वहीं विजिबल और अल्ट्रावायलेट लाइट भी आंखों की रोशनी को खराब करने का काम कर सकती है। टीवी देखने, देर तक कम्प्यूटर पर काम करने से आंखों में बुरा प्रभाव पड़ता है। न्यूट्रीशन और विटामिन्स की जरूरी मात्रा शरीर पर न पहुंचने से भी आंखों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

आंखों के स्वास्थ्य के जुड़ी तकलीफें (Frequent Eye Issues and Ailments)

आंखों से जुड़ी बीमारियां आंखों के स्वास्थ्य को खराब करने का काम करती हैं। कुछ बीमारियां जैसे कि विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस, ग्लॉकोमा, मोतियाबिंद आदि आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचाने का काम करती हैं। अगर समय पर आंखों की बीमारी की पहचान कर ली जाए, तो बड़ी समस्या से बचा जा सकता है। जानिए विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस की समस्या क्यों होती है?

विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस (Imaginative and prescient Impairment and Loss)

विजुअल इम्पेयरमेंट से मतलब विजुअल सिस्टम के एक्शन की लिमिटेशन से है। द नेशनल आय इंस्टीट्यूट (NEI) के मुताबिक लो विजन को विजुअल इम्पेयरमेंट कहते हैं, जो कि स्टैंडर्ड ग्लास, कॉन्टेक्ट लेंस, मेडिकेशन या सर्जरी के माध्यम से ठीक नहीं की जा सकती है। विजुअल इम्पेयरमेंट के कारण रोजाना के कार्य को करने में दिक्कत होती है।

  • लोअर विजुअल एक्युअटी का मतलब है कि विजन 20/70 और 20/400 के बीच है।विजुअल फील्ड 20 डिग्री या कम होता है।
  • ब्लाइंडनेस को विजुअल एक्युअटी20/400 से कम आंका जाता है। ऐसे में विजुअल फील्ड 10 डिग्री या कम होता है।
  • लीगल ब्लाइंडनेस का मतलब विजुअल एक्युअटी 20/200 है।
  • 20/70 से 20/400 विजुअल एक्युअटी को विजुअल इम्पेयरमेंट या लो विजन माना जाता है।

ग्लॉकोमा, एज रिलेटेड मस्कुलर डीजनरेशन आदि विजुअल इम्पेयरमेंट का कारण बन सकते हैं। विजुअल इम्पेयरमेंट के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं। जब  ग्लॉकोमा की समस्या होती है, तो आंखों का नॉर्मल फ्लूड आंखों में प्रेशर डालता है। एज रिलेटेड मस्कुलर डिजनरेशन में रीडिंग, ड्राइविंग आदि में समस्या हो सकती है। ये पेनलेस कंडीशन है। मोतियाबिंद में आय लेंस प्रभावित होता है और धुंधला दिखाई पड़ता है। डायबिटिक रेटीनोपैथी में आंखों की ब्लड वैसल्स डैमेज हो जाती हैं। इस कारण से एडल्ट में ब्लाइंडनेस की समस्या भी हो सकती है। विजन इम्पेयरमेंट और विजन लॉस के आप कई कारण अब जान गए होंगे। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से बात जरूर करें।

आय डिजीज (Eye Ailments) के कारण हो सकती हैं ये बीमारियां

Eye Diseases

लो विजन और ब्लाइंडनेस के मुख्य कारण एज रिलेटेड मस्कुलर डिजनरेशन (age-related macular degeneration), मोतियाबिंद (cataract), ग्लॉकोमा, डायबिटीक रेटीनोपैथी, एम्ब्लीओपिआ और स्ट्रैबिस्मस (amblyopia and strabismus) हो सकता है। जानिए आय डिजीज के बारे में।

आंखों में रिफ्रेक्टिव एरर (Refractive errors)

आंखों में रिफ्रेक्टिव एरर से मतलब मायोपिया (near-sightedness), हाइपरोपिया (farsightedness), एस्टिगमेटज्म ( (distorted imaginative and prescient in any respect distances) और प्रेस्बायोपिया (presbyopia) है। आंखों की इन समस्याओं का सामना 40-50 वर्ष की उम्र में करना पड़ सकता है। इस कारण से व्यक्ति को अखबार पढ़ने में, किताब पढ़ने में फोन के अक्षरों को पढ़ने में या फिर किसी वस्तु में फोकस करने में दिक्कत हो सकती है। दृष्टि संबंधी परेशानियों में सुधार किया जा सकता है। रिफ्रेक्टिव एरर की समस्या से निजात पाने के लिए डॉक्टर आयग्लासेस (eyeglasses), कॉन्टेक्ट लेंस (contact lenses) या फिर सर्जरी की सलाह दी जा सकती है। ये सच है कि रिफ्रेक्टिव एरर को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।

एज रिलेटेड मस्कुलर डिजनरेशन ( Age-Associated Macular Degeneration-AMD)

मस्कुलर डिजनरेशन (Macular degeneration) की समस्या उम्र बढ़ने के साथ शुरू हो जाती है। ये आंखों का डिसऑर्डर है, जो सेंट्रल विजन को डैमेज करने का काम करता है। कॉमन डेली टास्क जैसे कि वस्तुओं को देखने के लिए, ड्राइविंग के लिए सेंट्रल विजन बहुत जरूरी होता है। AMD मैक्युला, रेटीना के सेंट्रल पार्ट को डैमेज करता है। रेटीना का सेंट्रल पार्ट बारीक चीजों को देखने में मदद करता है। वेट और ड्राई एएमडी विजन लॉस के लिए जिम्मेदार होते हैं। वेट एएमडी में ब्लड वेसल्स लीकेज होने लगती हैं और सेंट्रल विजन लॉस का कारण बनती हैं। वेट एएमडी के कारण आंखों में रेखाएं बनने लगती हैं। वहीं उम्र बढ़ने के साथ जब मैक्युला थिन होने लगती है, तो ब्लर सेंट्रल विजन की समस्या हो जाती है। इस कारण से सेंट्रल आय विजन प्रभावित होता है।

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डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy)

डायबिटिक रेटीनोपैथी डायबिटीज का कॉमन कॉम्प्लीकेशन है। ब्लाइंडनेस का मुख्य कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी (Diabetic Retinopathy) की समस्या हो सकती है। डायबिटिक रेटीनोपैथी के कारण रेटीना की ब्लड वैसल्स डैमेज हो जाती हैं। आंखों के पीछे के टिशू लाइट सेंसिटिव होते हैं, जो कि अच्छी विजन के लिए बहुत जरूरी हैं। डायबिटिक रेटीनोपैथी चार स्टेजेस में बढ़ता है।

  • नॉनप्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी (non proliferative retinopathy)
  • मोडरेट नॉनप्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी (average non proliferative retinopathy)
  • सेवररनॉनप्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी (extreme non proliferative retinopathy)
  • प्रोलिफेरेटिव रेटिनोपैथी ( proliferative retinopathy)

डायबिटिक रिटेनोपैथी के जोखिम को कम करने के लिए डिजीज मैनेजमेंट बहुत जरूरी है। अगर ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर संबंधी समस्या और लिपिड संबंधी असामान्यताओं पर नियंत्रण किया जाए, तो जोखिम की संभावना कम करने में मदद मिलती है। करीब 50 प्रतिशत पेशेंट बीमारी का देरी से इलाज करा पाते हैं।

धीरे-धीरे बढ़ती है ग्लॉकोमा (Glaucoma) की बीमारी

Glaucoma

ग्लॉकोमा की बीमारी आंखों की ऑप्टिक नर्व को डैमेज करती है। इस कारण से विजन लॉस और ब्लाइंडनेस की समस्या हो जाती है। जब आंखों के अंदर का सामान्य द्रव दबाव ( regular fluid strain ) धीरे-धीरे बढ़ता है, तो ग्लॉकोमा की समस्या होती है। नॉर्मल आय प्रेशर भी ग्लूकोमा को जन्म दे सकता है। अगर समस्या का समाधान समय पर करा लिया जाए, तो आंखों को सीरियस विजन लॉस से बचाया जा सकता है। ग्लूकोमा के दो मुख्य प्रकार होते हैं। ओपन एंगल और क्लोज्ड एंगल ग्लॉकोमा। ओपन एंगल ग्लॉकोमा क्रॉनिक कंडीशन है, जो धीरे-धीरे बढ़ती है और व्यक्ति को इस बारे में एहसास भी नहीं होता है।अगर परिवार में किसी को ग्लॉकोमा है, तो इस बीमारी की संभावना अधिक बढ़ जाती है। बीमारी के लक्षण के आधार पर डॉक्टर जांच करते हैं और सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं।

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लेंस के धुंधलेपन के कारण होता है मोतियाबिंद (Cataracts)


उम्र बढ़ने के साथ ही मोतियाबिंद की बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है। मोतियाबिंद के कारण आंखों के लेंस में धुंधलापन छाने लगता है, जो अंधेपन का कारण बनता है। मोतियाबिंद की बीमारी वैसे तो अधिक उम्र में होती है लेकिन बीमारी के विभिन्न कारणों की वजह से ये किसी भी उम्र में हो सकती है। बच्चों को भी मोतियाबिंद की समस्या हो सकती है। मोतियाबिंद के कारण आंखें रोशनी के प्रति सेंसिटिव हो जाती हैं। व्यक्ति को रात में देखने में परेशानी हो सकती है। साथ ही रंग स्पष्ट नहीं हो पाते हैं या हल्के नजर आते हैं। धीरे-धीरे आंखों की रोशनी भी कम होने लगती है। मोतियाबिंद के लक्षण अक्सर दिखाई नहीं पड़ते हैं। अगर आपको आंखों से देखने में परेशानी हो रही हो या फिर आंखों में दर्द की समस्या हो, तो डॉक्टर से जांत जरूर करानी चाहिए। आंखों की रोशनी अनमोल है। अगर आपको आंखों में थोड़ी चोट लगी हो, तो उसे बिल्कुल भी इग्नोर न करें। ये मोतियाबिंद की संभावना को बढ़ा सकता है। डॉक्टर टेस्ट के बाद सर्जरी की सलाह दे सकते हैं।

जानिए आंखों से जुड़ी अन्य समस्याओं के बारे में (Different Eye Points)

आंखों की अन्य बीमारियों में एब्लीओपिया और स्ट्रैबिस्मस शामिल है। एब्लीओपिया( Amblyopia) को लेजी आय (lazy eye) के नाम से भी जाना जाता है। बच्चों में विजन इम्पेयरमेंट मुख्य कारण हो सकता है। इस समस्या के कारण एक आंख की रोशनी कम हो जाती है क्योंकि आंख और दिमाग एक साथ काम नहीं कर पाता है। जिस आंख की रोशनी कम होती है, वो दिखने में तो सामान्य होती है लेकिन उस आंख से दिखाई नहीं पड़ता है। दिमाग दूसरी आंख को फेवर करता है। इस आय कंडीशन के कारण दूर की दृष्टि, पास की दृष्टि खराब हो सकती है। साथ ही मोतियाबिंद की स्थिति भी पैदा हो सकती है। अगर बचपन में इस बीमारी का इलाज नहीं किया जाता है, तो वयस्क होने पर इस बीमारी के कारण दृष्टि हानि हो सकती है।

स्ट्रैबिस्मस (strabismus ) के कारण आंखों में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसा दोनों आंखों के बीच कॉर्डिनेशन की कमी के कारण होता है। इस कारण से दोनों आंखें सिंगल पॉइंट में फोकस नहीं कर पाती हैं। इस बीमारी का कारण ज्ञात नहीं है। बच्चे के जन्म के बाद स्ट्रैबिस्मस कंडीशन दिखाई दे सकती है। जब आंखें एक इमेज में फोकस नहीं कर पाती है, तो ब्रेन आय इनपुट को इग्नोर करने लगता है। इस कारण से आंखों की रोशनी भी जा सकती है। वहीं ट्रैकोमा (Trachoma) के कारण आंखों में सूजन की समस्या हो जाती है। क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस ( Chlamydia trachomatis) माइक्रोऑर्गेनिज्म के कारण आंखों में इन्फेक्शन हो जाता है। ये संक्रमण रूरल कंट्रीज में पाया जाता है।

आंखों की बीमारी से बचाव के लिए उपाय

हमने आपको आंखों संबंधी बीमारी के बारे में जानकारी दी। इन बीमारियों से बचा भी जा सकता है। अगर बीमारी के लक्षण आपको दिखाई पड़ते हैं, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। आंखें शरीर का सेंसिटिव ऑर्गन हैं। जानिए अगर आपको आंखों संबंधी बीमारी हो जाती है, तो किन उपायों को अपनाया जा सकता है।

विजन इम्पेयरमेंट (Imaginative and prescient Impairment) से बचाव

विजन इम्पेयरमेंट (Imaginative and prescient Impairment) से बचाव के लिए आय ग्लासेज, कॉन्टेक्ट लेंस, आय ड्रॉप या अन्य मेडिसिन का उपयोग करने की सलाह डॉक्टर देते हैं। कुछ केसेज में डॉक्टर सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं। मोतियाबिंद की समस्या में डॉक्टर लेंस के धुंधलेपन को हटाने के लिए लेंस को रिमूव कर देते हैं और उसकी जगह आर्टिफिशियल लेंस ( intraocular lens) लगा देते हैं। आर्टिफिशियल लेंस को स्पेशल केयर की जरूरत नहीं पड़ती है।

आय डिजीज (Eye Ailments) से बचाव के लिए उपाय

आंखों में रिफ्रेक्टिव एरर (Refractive errors) को दूर करने के लिए डॉक्टर आंखों की जांच करते हैं। जांच के दौरान दर्द या परेशानी नहीं होती है। डॉक्टर पास के या फिर दूर के अक्षरों को पढ़ने के लिए कह सकते हैं। फिर डॉक्टर आंखों में ड्रॉप डालेंगे और आंखों समस्या को जानने की कोशिश करेंगे। रिफ्रेक्टिव एरर को दूर करने के लिए डॉक्टर चश्मा (Glasses) लगाने की सालह दे सकते हैं। अगर आपको लेंस का यूज करना है, तो डॉक्टर से सलाह लें। डॉक्टर लेंस को सुरक्षित तरीके से लगाने की सलाह दे सकते हैं। वहीं, कॉर्निया की शेप को चेंज करने के लिए डॉक्टर लेजर आय सर्जरी भी कर सकते हैं।

वेट एएमडी (moist AMD) के लिए डॉक्टर रानीबिजुमड(Ranibizumad), अफ्लिब्रीसेप्ट (Aflibercept ) और बेवाकिजुमाब (Bevacizumab)दवा लेने की सलाह दे सकते हैं। इन ड्रग्स को आंख के कैविटी ( vitreous cavity) में इंजेक्ट किया जाता है, जिसके कारण रेटिना के नीचे ब्लड वैसल्स से रिसाव कम हो जाता है। ये ट्रीटमेंट लाइफ टाइम किया जा सकता है।

डायबिटिक रेटीनोपैथी की समस्या से निजात के लिए डॉक्टर फ्लोरेसिन एंजियोग्राफी टेस्ट की हेल्प से डायबिटिक रेटिनोपैथी की जांच करेंगे। डॉक्टर एडवांस डायबिटिक रेटिनोपैथी के लिए सर्जिकल ट्रीटमेंट की सलाह दे सकते हैं। वहीं लेजर ट्रीटमेंट की हेल्प से आंखों में हो रहे लीकेज को रोका जा सकता है। डॉक्टर स्कैटर लेजर ट्रीटमेंट और विटरेक्टॉमी ट्रीटमेंट की हेल्प भी ली जा सकती है।

 ग्लॉकोमा (Glaucoma) की बीमारी से बचाव के लिए

डॉक्टर ग्लॉकोमा की बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए आय ड्रॉप जैसे कि अल्फा एड्रीनर्जिक एगोनिस्ट, कार्बोनिक एनहाइड्रेज इनहिबिटर , बीटा ब्लॉकर्स आदि का यूज आय प्रेशर को कम करने के लिए किया जा सकता है। वहीं कुछ दवाओं को खाने की सलाह दी जा सकती है। लेजर ट्रैबेकोप्लास्टी ट्रीटमेंट की हेल्प से डॉक्टर आंखों के बहाव को रोकने की कोशिश कर सकते हैं। आप ग्लॉकोमा के बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें। डॉक्टर आपको बीमारी के अनुसार उपाय के बारे में जानकारी देंगे।

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मोतियाबिंद (Cataracts) से बचाव के लिए सर्जरी

मोतियाबिंद (

मोतियाबिंद के कारण लेंस खराब हो जाता है। लेंस में धुंधलेपन के कारण इमेज साफ नहीं दिखाई देती है। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर लेंस को हटाने के लिए अल्ट्रासाउंड वेव का प्रयोग करते हैं। वेव की सहायता से लेंस को फ्लेसिबल बनाया जाता है ताकि वो टूट जाए। इस प्रोसेस को इंसीजन मोतियाबिंद सर्जरी कहते हैं। इसके बाद एक्स्ट्राकैप्सुलर सर्जरी की सहायता से आर्टिफिशियल इंट्राऑक्युलर लेंस का यूज किया जाता है। मोतियाबिंद के इलाज के लिए सर्जरी को सुरक्षित और काफी हद तक सफल माना जाता है। मोतियाबिंद से बचने के लिए अल्ट्रावायलेट रेज से बचना चाहिए। साथ ही आंखों पर अधिक प्रेशर नहीं डालना चाहिए। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

आंखों से जुड़ी अन्य समस्याओं के लिए उपाय

आंखों से जुड़ी अन्य समस्याओं मे से एक एब्लियोपिया ( Amblyopia) से बचने के लिए डॉक्टर ब्रेन को इमेज कैप्चर करने के लिए फोर्स करते हैं। इसके लिए ग्लासेज, आय पैचेज, आय ड्रॉप या सर्जरी की जा सकती है। आय मसल्स सर्जरी की सहायता से मसल्स को लूज या टाइट किया जाता है। इस सर्जरी में पेशेंट को हॉस्पिटल से जल्दी छुट्टी मिल जाती है।

स्ट्रैबिस्मस (strabismus ) के उपचार के लिए डॉक्टर ग्लासेज या कॉन्टेक्ट लेंस पहनने की सलाह दे सकते हैं। वहीं प्रिज्म लेंस की सहायता से आंखों में आने वाली रोशनी को बदलने का प्रयास किया जाता है। प्रिज्म लेंस का यूज करने से आंखों के घूमने की क्षमता खत्म हो सकती है। डॉक्टर आय कॉर्डिनेशन और आय फोकसिंग के लिए विजन थेरिपी की सलाह भी दे सकते हैं। आय एक्सरसाइज की हेल्प से आय फोकसिंग पावर बढ़ती है। वहीं आय मसल्स सर्जरी की हेल्प से मसल्स की लेंथ और पुजिशन को चेंज किया जाता है।

ट्रोकोमा के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह देंगे। एंटीबायोटिक्स इन्फेक्शन को खत्म करने का काम करेगा। डॉक्टर टेट्रासाइक्लिन आय मरहम (tetracycline eye ointment) या ओरल एजिथ्रोमाइसिन (oral azithromycin ) लेने की सलाह भी दे सकते हैं।

आय डिजीज की जांच के लिए किए जाते हैं ये टेस्ट्स (Eye Assessments and Exams)

eye disease test

आंखों में होने वाली समस्याओं की जांच के लिए विभिन्न प्रकार के टेस्ट्स किए जा सकते हैं। प्रत्येक आंख का अलग-अलग टेस्ट किया जाता है। डॉक्टर जांच से पहले पेशेंट से बीमारी के लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं और उसके बाद ही टेस्ट करते हैं। जानिए आंखों की बीमारी की जांच के लिए किन टेस्ट्स की सहायता ली जाती है।

  • एंजियोग्राफी ( Angiography)
  • इलेक्ट्रोरेटीनोग्राफी( electroretinography)
  • अल्ट्रासोनोग्राफी( Ultrasonography)
  • पिचिमेट्री ( Pachymetry)
  • ऑप्टिकल कोहरेन्स टोमोग्राफी(Optical Coherence Tomography )
  • कम्प्यूटर टोमोग्राफी (Computed Tomography )
  • स्लिट-लैंप एक्जाम(Slit-Lamp Examination )
  • अल्ट्रासाउंड (Ultrasound )
  • विजुअल एक्यूटी टेस्टिंग(Visible Acuity Testing)

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आय डिजीज के लिए किए जा सकते हैं ये प्रोसीजर्स (Frequent Eye Procedures)

आय डिजीज से बचने के लिए डॉक्टर ट्रीटमेंट के दौरान सर्जरी या मेडिकेशन की हेल्प लेते हैं। बीमारी के लक्षणों के अनुसार ही ट्रीटमेंट किया जाता है। जानिए आंखों की समस्याओं से निजात पाने के लिए कौन से ट्रीटमेंट किए जाते हैं।

  • बेटर विजन के लिए लेसिक प्रोसीजर (Lasik) अपनाया जाता है। लेजर की हेल्प से कॉर्निया के टिशू को हटाने का काम किया जाता है। लेजर प्रोसेस कॉर्निया को रीशेप करने का काम करता है। निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष की समस्या को इस प्रोसेस की हेल्प से दूर किया जाता है।
  • फोटोरिफ्रेक्टिव कोरटक्टॉमी (photorefractive keratectomy) की हेल्प से निकट दृष्टि दोष या दूर दृष्टि दोष की समस्या को दूर किया जाता है। जो लोग कमजोर विजन को दूर करने के लिए चश्मा नहीं पहनना चाहते हैं, उनके लिए फोटोरिफ्रेक्टिव कोरटक्टॉमी बेहतर विकल्प है।
  • मोतियाबिंद सर्जरी (Cataract Surgical procedure) की हेल्प से सर्जन ब्लरी लेंस को हटाकर उसके स्थान में आर्टिफिशियल लेंस लगाते हैं।
  • डायबिटिक रेटिनोपैथी सर्जरी (Diabetic Retinopathy Surgical procedure) में डॉक्टर लेजर की हेल्प से आंखों में आय सूजन को कम करने का काम करता है।
  • मैक्युलर डिजनरेशन सर्जरी (Macular Degeneration Surgical procedure) की सहायता से आंखों में ब्लीडिंग की समस्या को रोका जा सकता है। मैक्युलर डिजनरेशन सर्जरी के कुछ साल बाद पेशेंट को लेजर ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है।

आंखों की देखभाल के लिए ये टिप्स जरूर करें फॉलो

  • खाने में विटामिन्स और मिनरल्स की कमी न होने दें।
  • अगर कम्प्यूटर या फिर मोबाइल में काम कर रहे हैं, तो आंखों में चश्मा जरूर लगाएं।
  • सनलाइट में जाते समय भी धूप का चश्मा जरूर पहनें।
  • आंखों के इन्फेक्शन से बचने के लिए आंखों की सफाई जरूर करें।
  • लेंस का यूज करने से पहले डॉक्टर से सावधानियों के बारे में जरूर जानकारी लें।
  • अगर आपने लेसिक सर्जरी कराई है, तो कुछ दिनों तक आंखों में अधिक जोर देने की कोशिश न करें।
  • स्क्रीन को लगातार न देखें और कुछ समय बाद पलके जरूर झपकाएं।
  • आंखों में दर्द होने या किसी प्रकार की समस्या होने पर डॉक्टर को जरूर दिखाएं।
  • अगर आंखों में सूखापन है, तो डॉक्टर से परामर्श के बाद ही आय ड्रॉप डालें।
  • बिना डॉक्टर की सलाह के आंखों में किसी अन्य व्यक्ति के आय ड्रॉप का प्रयोग न करें।
  • अन्य व्यक्ति का चश्मा या लेंस भूलकर भी इस्तेमाल न करें।

आय ड्रॉप या मेडिसिन लेते समय रखें ये सावधानियां

जैसा कि हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि आंखें शरीर का बहुत ही सेंसिटिव ऑर्गन होती है। भले ही बुखार या फिर सामान्य बीमारियों में लोग बिना डॉक्टर की सलाह के दवा का इस्तेमाल करते हो लेकिन आंखों के मामले में ऐसा बिल्कुल न करें। आंखों में किसी भी तरह की समस्या होने पर आय स्पेशलिस्ट को दिखाएं और जानकारी लेने के बाद ही दवा या आय ड्रॉप का इस्तेमाल करें। डॉक्टर ने आपको जितनी बार आय ड्रॉप डालने की सलाह दी हो, उतनी बार ही दवा का इस्तेमाल करें।

आंखों से संबंधित है समस्या, तो इन बातों का रखें ख्याल

आंखों की देखभाल न केवल बड़ों बल्कि बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। जिन बच्चों को डॉक्टर ने चश्मा पहनने की सलाह दी है, उन्हें पढ़ते समय, टीवी या फोन का इस्तेमाल करते समय चश्मा जरूर पहनना चाहिए। उपयोग न होने पर चश्में को सुरक्षित जरूर रखें वरना चश्मा टूटने का खतरा रहता है। बच्चे अक्सर चश्मे के साथ खेलते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए चश्में का उपयोग न होने पर उसे बॉक्स में सुरक्षित रख दें। अगर आप लेंस यूज कर रहे हैं, तो डॉक्टर से लेंस यूज करने के बारे में जानकारी जरूर लें। आय इन्फेक्शन या आंखों में जलन होने पर लेंस का यूज न करें। लेंस यूज करने से पहले सॉल्यूशन को चेंज करें। आपर आंखों को साफ करने के बाद ही लेंस का यूज करें। आंखों की देखभाल संबंधी अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।

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जानिए आंखों की सेहत से जुड़े मिथ्स और फैक्ट्स

आंखों की सेहत को लेकर लोगों के मन में कई तरह के भ्रम होते हैं। अगर आपको आय हेल्थ के बारे में सही जानकारी नहीं है, तो आप आंखों की ठीक तरह से देखभाल नहीं कर सकते हैं। जानिए आंखों की सेहत से जुड़े मिथ्स और फैक्ट्स के बारे में।

मिथ : रोजाना चश्मा लगाने से चश्मा नहीं हटता है।
फैक्ट : चश्मा लगाने से आंखों को अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता है। अगर बच्चों की आंखे कमजोर हुई हैं, तो रोजाना चश्मा लगाने और हेल्दी डायट लेने से चश्मा हट भी सकता है।

मिथ : 20/20 का मतलब है कि आय हेल्थ बिल्कुल ठीक है।
फैक्ट : 20/20 आय की सेंट्रल विजन के ठीक होने की जानकारी देता है। विजन संबंधी अन्य रोगों के बारे में 20/20 विजन का कोई मतलब नहीं होता है।

मिथ : आंखों की कमजोरी अनुवांशिक होती है।
फैक्ट : ऐसा हो सकता है लेकिन आंखों की सभी बीमारियों में ये बात लागू नहीं होती है। अगर बच्चे को सही से पोषण नहीं मिला है या फिर आंखों में किसी चोट के कारण विजन प्रॉब्लम हो गई है, तो इसे जेनेटिक इफेक्ट नहीं कहेंगे।

मिथ : ज्यादा टीवी या मोबाइल देखने से आंखे खराब होती हैं।
फैक्ट : ये बात सच है कि मोबाइल या अधिक टीवी देखने से आंखों में सूखापन आ जाता है और आंखों संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं लेकिन ये वीक आय का कारण बनें, ये जरूरी नहीं है।

अच्छी आय हेल्थ के लिए खाएं ये फूड (meals for eye well being)

eye health food

अच्छी आय हेल्थ के लिए आपको खाने में कुछ न्यूट्रीएंट्स जैसे कि ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, जिंक, विटामिन सी, विटामिन ई और विटामिन-ए आदि को खाने में शामिल करना चाहिए। जानिए कौन से फूड्स आपकी आंखों की सेहत के लिए अच्छे हैं।

  • ग्रीन लीफी वेजीटेबल्स को खाने में शामिल करें।
  • सैलमोन, टूना और अन्य ऑयली फिश को खाने में शामिल करें।
  • अंडे, नट्स, बीन्स और नॉनमीट प्रोटीन खाएं।
  • संतरे और अन्य खट्टे फलों को खाएं या जूस पिएं।
  • खाने में गाजर, शकरकंद को सलाद के रूप में लें।
  • खाने के साथ ही पानी भी पर्याप्त मात्रा में पिएं

इन फूड्स को करें इग्नोर

मस्कुलर डिजनरेशन की समस्या से बचने के लिए आपको खाने में स्वीट यानी मीठा कम कर देना चाहिए। टेबल सॉस या ड्रेंसिंग को बहुत कम मात्रा में खाने में शामिल करें। हाई जीआई (glycemic index) फूड ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाने का काम कर सकते हैं। खाने में फ्राइड फूड को इग्नोर करें और फूड को बेक करके खाएं। कोल्ड ड्रिंक्स में अधिक मात्रा में शुगर होती है, जो आपकी आंखों के लिए ठीक नहीं है। आप खाने में प्रोसेस्ड फूड को भी इग्नोर करें। डयबिटिक पेशेंट को अपनी आंखों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।

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