प्यार, सेक्स और कमिटमेंट... कितना बदला रिश्ता? (Why Our Relationship Changes Over Time?)

Published:Dec 5, 202315:45
Updated on:Dec 5, 2023
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प्यार, सेक्स और कमिटमेंट… कितना बदला रिश्ता? (Why Our Relationship Changes Over Time?)

समाज जितनी तेज़ी से बदल रहा है, उतनी ही तेज़ी से प्यार, सेक्स और कमिटमेंट की परिभाषा व अहमियत भी बदल रही है. नई पीढ़ी संबंधों के अर्थ को पुनः परिभाषित कर रही है. इस दौर में जब इंस्टेंट कॉफी, फास्ट फूड, फेसबुक, ट्विटर और नेट चैट एक ट्रेंड व इन-थिंग बन गया है, प्यार का अर्थ बदला है और उसके साथ ही सेक्स व कमिटमेंट को लेकर भी धारणाएं बदली हैं.  सेक्स को प्यार माना जा रहा है और कमिटमेंट को बंधन. विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण बरक़रार है, पर आज का युगल कमिटमेंट से डरता है. आज प्यार में सेक्स घुल गया है और जब रिश्तों में प्यार न हो, तो कमिटमेंट का सवाल ही नहीं उठता है. प्यार शॉर्ट एंड स्वीट और लिव-इन के चारों ओर चक्कर लगा रहा है.

आज सामाजिक संबंधों के साथ-साथ परिवार के आत्मीय रिश्तों से जुड़े सरोकार भी बहुत कमज़ोर पड़ रहे हैं. हर जगह स्वार्थ पसर गया है. परिवार के आत्मीय संबंधों पर चोट करनेवाली तमाम घटनाएं आज देखने में आ रही हैं.

Why Our Relationship Changes Over Time
शॉर्टकट रिश्तों में भी

प्यार, रिश्ते और अपनापन जैसी भावनाओं पर स्वार्थ और शारीरिक आकर्षण हावी हो गया है. कमिटमेंट अब लोगों को बंधन लगता है, ऐसे में ज़िम्मेदारियां निभाना भी बोझ लगता है. हर कोई अपनी तरह से जीने का नारा लगाता हुआ लगता है. रिश्तों में भी शॉर्टकट अपनाया जाने लगा है. मिलो, बैठो कुछ पल और फिर एक दूरी बना लो. हर कोई अपनी एक स्पेस की चाह में अपनों से ही दूर होता जा रहा है. आज रिश्ता चीन के उस उत्पाद की तरह हो गया है, जो सस्ता तो है, पर टिकाऊ है या नहीं, इसका पता नहीं.

वर्तमान समय में रिश्तों की अहमियत इतनी बदल चुकी है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे अपनी व्यस्तता के कारण हो या निजी स्वार्थवश, बस रिश्तों को निभाने की बजाय उसे ढो रहा है.

समाजशास्त्री नेहा बजाज मानती हैं कि यह बबलगम प्यार का दौर है और इसमें युवा लड़का और लड़की दोनों ही की सोच एक जैसी है. जिस तरह आप बबलगम चबाते रहते हैं और जब मन भर जाता है, तब उसे थूक देते हैं, उसी तरह प्यार भी हो गया है. इसलिए आज के युग में कमिटमेंट का स़िर्फयही मतलब रह गया है कि फिल्में जाओ, पब और पार्टी में जाओ और अच्छे दोस्तों की तरह चिलआउट करो. इस बदलते दृष्टिकोण या व्यवहार का मुख्य कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, क्योंकि कोई भी अपनी आज़ादी नहीं खोना चाहता.

कमिटमेंट से डरने लगे हैं लोग

रिश्ते बनाना तो आसान है, मगर निभाना मुश्किल है, क्योंकि निभाने के लिए चाहिए होता है कमिटमेंट. पर आजकल लोग रिश्तों को स़िर्फ सोशल मीडिया से ही निभा रहे हैं.

आज बिना किसी ज़िम्मेदारीवाले संबंध आसान और आरामदायक होते जा रहे हैं. दीर्घकालीन संबंध बोरिंग लगने लगे हैं. विडंबना तो यह है कि आज रिश्तों में न तो कोई उम्मीद रख रहा है, न ही आश्‍वस्त कर पा रहा है कि हम हैं तुम्हारे साथ. कमिटमेंट बदलते हैं, लोग बदल जाते हैं और किसी को भी इससे शिकायत नहीं होती. दीर्घकालीन संबंध तेज़ी से इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे हैं. युवा कमिटमेंट से बहुत अधिक डरे और सहमे हुए हैं और जब अफेयर गंभीर होने लगे, तो उन्हें परेशानी होने लगती है. उन्हें लगता है कि परंपरागत और ओल्ड फैशंड अफेयर का मतलब ग़ुलामी और स्वतंत्रता खो देना है.

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हालांकि अभी भी ऐसा वर्ग है, जो प्यार को महत्वपूर्ण मानता है और सेक्स को मर्यादित दृष्टि से देखता है व कमिटमेंट करने को भी तत्पर है. सारे रिश्ते बबलगम की तरह नहीं हो गए हैं. आज भी लोग प्रेम को गंभीरता से लेते हैं. उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है सही साथी की तलाश. और तलाश ख़त्म होने पर जब उनका आपसी तालमेल बैठता जाता है, तो फिर पीछे मुड़कर देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती.

Why Our Relationship Changes Over Time

निजी स्वार्थ बढ़ रहा है

वर्तमान की इस तेज़ी से भागती ज़िंदगी के मद्देनज़र अब यह बहस चल पड़ी है कि क्या सामाजिक रिश्तों में अभी और कड़वाहट बढ़ेगी? क्या भविष्य में विवाह और परिवार का सामाजिक-वैधानिक ढांचा बच पाएगा? क्या बच्चों को परिवार का वात्सल्य, संवेदनाओं का एहसास, मूल्यों तथा संस्कारों की सीख मिल पाएगी? क्या भविष्य के भारतीय समाज में एकल परिवार के साथ में लिव-इन जैसे संबंध ही जीवन की सच्चाई बनकर उभरेंगे?

छोटे-छोटे निजी स्वार्थों को लेकर रिश्तों में व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है. आज हर रिश्ता एक तनाव के दौर से गुज़र रहा है. वह चाहे माता-पिता का हो या पति-पत्नी का, भाई-बहन, दोस्त या अधिकारी व कर्मचारी का. इन सभी रिश्तों के बीच ठंडापन पनप रहा है.

संवादहीनता और व्यस्तता की वजह से प्यार रिश्तों के बीच से सरक रहा है और सेक्स मात्र रूटीन बनकर रह गया है. स्त्री-पुरुष दोनों आर्थिक रूप से सक्षम हैं, इसलिए अपनी-अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करते हुए कमिटमेंट से बचना चाहते हैं. अपने साथी से पहले जो भी बात कहनी होती थी, वह या तो साथ बैठकर एक-दूसरे से कही जाती थी या फोन पर बातचीत करके. आज इसकी जगह ले ली है व्हाट्सऐप ने. आप मैसेज छोड़ देते हैं. कई बार सामनेवाला पढ़ नहीं पाता और फिर झगड़ा होना तय होता है. कहीं से घूमकर आने के बाद पहले जहां मिल-जुलकर फोटो देखने का मज़ा लेते थे, वहीं आज फेसबुक पर एक-दूसरे की फोटो देखी जाती है.

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रिलेशनशिप में प्यार कम, लस्ट (वासना) ज़्यादा होता है. अगर आपका रिश्ता प्यार पर नहीं, वासना पर टिका है, तो वह रिश्ता ज़्यादा दिनों तक नहीं रहता. आमतौर पर रिश्ते टूटने की वजह भी यही बन रहा है. रिश्ते में फिज़िकल कनेक्शन ज़रूर बनता है, लेकिन भावनात्मक रूप से जुड़ाव देखने को नहीं मिलता. तो किस तरह का रिश्ता है यह? केवल आकर्षण या प्यार या फिर केवल लस्ट?

प्रोफेशनल होते रिश्ते

आजकल उन रिश्तों को ज़्यादा अहमियत दी जाती है, जो प्रोफेशनल होते हैं, क्योंकि वो हमारे फ़ायदे के होते हैं. रिश्तों में भी अब हम फ़ायदा-नुक़सान ही देखते हैं. जो कामयाब है, रसूखवाले हैं, पैसेवाले हैं, उनसे संबंध रखने में ही फ़ायदा है. इसके चलते कुछ रिश्ते ऐसे ही ख़त्म हो जाते हैं. हम अब उन रिश्तों को ही अहमियत देते हैं, जिनसे बिज़नेस में और लाइफ में भी ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा हो. युवापीढ़ी प्रैक्टिकल और कैलकुलेटिव हो गई है. ऐसे में रिश्तों की अहमियत घटना स्वाभाविक ही है.

कमिटमेंट करने के लिए या प्यार निभाने के लिए सच्चाई व ईमानदारी की ज़रूरत होती है. अपने साथी की भावनाओं को समझने की ज़रूरत होती है. सेक्स को प्यार के साथ जोड़ने और रिश्ते में कमिटमेंट के जुड़ने से रिश्ता टिका रहता है. प्लास्टिक के फूलों की ख़ुशबू के साथ कृत्रिम ज़िंदगी जीने से अच्छा है कि प्यार और विश्‍वास के ताज़ा फूलों से रिश्तों को सजा लिया जाए.

– सुमन बाजपेयी



Source: https://www.merisaheli.com/why-our-relationship-changes-over-time/


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