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Amalaki Ekadashi 2021: आमलकी एकादशी कब है? जानें इस व्रत का महात्म्य, क्यों की जाती है इस दिन परशुरामजी की पूजा?

Amalaki Ekadashi 2021: आमलकी एकादशी कब है? जानें इस व्रत का महात्म्य, क्यों की जाती है इस दिन परशुरामजी की पूजा?

आंवला एकादशी (Photograph Credit: Twitter)

सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुल मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन आमलकी एकादशी (Amalaki Ekadashi ) का व्रत रखते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन श्रीहरि के व्रत-पूजन के साथ परसुराम जी की भी पूजा की जाती है. शास्त्रों में भी आमलकी एकादशी का विशेष महत्व वर्णित है. इसे आंवला एकादशी (Amla Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. यह पावन पर्व होली से पूर्व आती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 25 मार्च के दिन गुरुवार को आमलकी एकादशी का व्रत एवं पूजन किया जाएगा. गुरुवार श्रीहरि को समर्पित दिन माना जाता है, इस वजह से इस एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. जीवन खुशियों से भर जाता है.

आमलकी एकादशी के पारण के लिए शुभ मुहूर्त-

26 मार्च प्रातःकाल 06.18 से 08.46 बजे तक

आमलकी एकादशी का महात्म्यः

मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान श्रीहरि का वास होता है. उन्हें आंवले का वृक्ष बेहद प्रिय है. अगर आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर श्रीहरि का पूजन किया जाए तो जातक को हजारों तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य की प्राप्ति होती है और देहावसान के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है. पद्म पुराण के अनुसार, आमलकी एकादशी के दिन व्रत रखने और पूरे विधि विधान के साथ विष्णु जी की पूजा करने से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं, घर में सुख-शांति-समृद्धि आती है.

व्रत एवं पूजाः

फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करने के पश्चात श्रीहरि के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. पूरे दिन फलाहार रखते हुए सायंकाल के समय आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए. सर्वप्रथम आंवले के वृक्ष की जड़ के चारों ओर गाय के गोबर से लिपाई कर उसे शुद्ध करें. इसके बाद पेड़ की जड़ के करीब एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें. कलश में सामान्य जल में कुछ बूंदे गंगाजल, कुछ मुद्राएं, सुपारी, सुगंध अक्षत एवं रोली रखकर सभी तीर्थों एवं सागर को आमंत्रित करें. कलश पर आम्र पल्लव रखकर बड़े ढक्कन से ढक दें. इस पर चंदन का लेप लगाकर इस पर रोली से स्वास्तिक बनाएं एवं वस्त्र पहनाएं. कलश के सामने शुद्ध घी का दीप प्रज्जवलित करें. अब कलश के ऊपर श्रीहरी के छठे अवतार परशुराम जी की प्रतिमा स्थापित करें और विधिवत रूप से इनकी पूजा करें. पूजा के दरम्यान निम्न मंत्रों का उच्चारण करें. इसके बाद आमलकी एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें. रात्रि में भगवत कथा पढ़ते हुए ब्राह्मण को भोजन करवायें. इसके बाद कलश समेत परशुराम जी की प्रतिमा ब्राह्मण को उपहार स्वरूप दें. इसके पश्चात पारण करें.

आमलकी एकादशी मंत्र-

‘मम कायिकवाचिकमानसिक, सांसर्गिकपातकोपपातकदुरितः

क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त , फल प्राप्तयै श्री परमेश्वरप्रीतिः

कामनायै आमलकी, एकादशी व्रतमहं करिष्ये’

आमलकी एकादशी की पौराणिक कथा;

प्राचीनकाल में चित्रसेन नामक राजा थे. उसके राज्य में राजा समेत सभी प्रजा एकादशी का व्रत रखती थी. एक बार राजा शिकार करते हुए जंगल में काफी दूर निकल गए. उसी समय कुछ पहाड़ी डाकुओं ने उन पर आक्रमण कर दिया. लेकिन डाकू जब भी राजा पर शस्त्रों से प्रहार करते तो वह शस्त्र फूल बन जाते थे. लेकिन संख्या में डाकू ज्यादा थे, लिहाजा लड़ते-लड़ते थककर राजा मूर्छित होकर गिर पड़े. इसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई, उस शक्ति ने सभी डाकुओं को मारकर अदृश्य हो गई. राजा को जब होश आया तो सभी डाकुओं को मृत देखकर सोचा कि इन डाकुओं को किसने मारा. तभी आकाशवाणी हुई, – हे, राजन! यह सभी दुष्ट तुम्हारे आमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मारे गए हैं. तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है. यह आकाशवाणी सुनकर राजा को अत्यंत प्रसन्नता हुई. राजा ने अपने राज्य वापस लौटकर सभी को एकादशी व्रत का महत्व बतलाया.


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